तुम भूल रहे हो
तुम भूल रहे हो...
पन्नों को पलटते हुए
पढ़ चुके शब्दों की गहराइयों को
जो इस आशा से लिखी गई थी कि
पिरोए गए अक्षरों में घुला हुआ भाव
तुम महसूस कर पाओगे
तुम भूल रहे हो ।
पन्नों को पलटते हुए
कि पढ़े हुए किताबों से मिली तालीम
महज डिग्री की इमारत बनाने के लिए नहीं
जिसकी नींव कमजोर ईमान पर खड़ी हो
तुम्हें याद रखना होगा
इस प्रतिस्पर्धा के दौर में भी
कि इंसानियत का अहम् हिस्सा हो तुम
तुम्हें सुनना होगा
इस बाहरी शोर में भी
अपने अंतर्मन की आवाज
जो तुम्हारे इंसान से शैतान बनने पर
दर्द से चीख-चीख कर रो रहा है।।
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