अकेलापन
कोने में अकेले पड़ी हूं
यह नीरस हृदय का खालीपन
गुमसुम सी दीवार
और मेरा चीखता मन
गूंजता है कानों में।।
कभी मोबाइल, कभी खिड़कियों पर
कभी बालकनी में
राहों पर टकटकी लगाए
सुबह से शाम हो जाती है।
जहां किसी के लौटने का इंतजार नहीं
किसी को मुझ तक पहुंचने की जल्दबाजी नहीं।
घड़ी की टिक-टिक की आवाज
और सजे-धजे कमरे
जहां सिलवट पड़ते ही नहीं।
नींद कोसों दूर है
यह सूनापन,अकेलापन
इतनी व्यस्त दुनिया में
जहां मेरे खालीपन की कोई जगह नहीं।।
By Pallavi Mishra
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