पंछियों को देखा था
पंछियों को देखा था...
तिनका-तिनका ढूंढते हुए, बटोरते हुए
घोंसले बनाते हुए ,सजाते हुए
पंछियों को देखा था...
खुद के जिगर के टुकड़ों को
बेरहमों की नजर से बचाते हुए
पंछियों को देखा था, डर की जिंदगी गुजारते हुए...
कि तोड़ ना दे कोई भी,
कहीं भी जिंदगी के डोर
और आज ठीक वैसे ही देख रही इंसानों को,
कि डर है कब, कौन,क्यों, कैसे तोड़ दे
इनके तिनके के आशियाने को
कहीं बिखर ना जाएं सहेजें हुए सपने
जो बने हैं कई बरसों में ।-2
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