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मिटा अंतर्मन का तम
हुआ ज्ञान प्रकाश से उज्ज्वल
जब मार्ग प्रशस्त किया आपने
लक्ष्य दिखा तब जीवन का प्रबल
जब प्रकाशमान किया आपने
शिक्षा भी मिली कैसी निराली!
नहीं संकुचित शब्दों में
कहा आपने-
"देख कंटीली राह को
ना रचना इतिहास स्वयं का
अकर्मण्यता के पन्नों में।।"
बस यही मूलमंत्र
लक्ष्यप्राप्त करने में।
शत-शत नमन आपको
हे गुरुवर! धन्य हुए हम
आपके ज्ञानचक्षु पड़ने से।।
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